” वक्त ” एक सत्व परीक्षा
दर्द पे दर्द , मुश्किले हि मुश्किले
सिलसिला ये चल रहा था ,
मै तो निभा रही थी दोस्ती वक्त से ,
परीक्षा जो मेरी ले रहा था !
ढूँढती थी कहीं ‘ हाँ ‘ को , किसी एक अंधेरेमें
मिला ही तो ‘ ना ‘ का तारा , किरण हि छुपी तिमिर में ,
याद आ गयी वो ख़ुशी वक़्त की अपनोंके साथ
पहचान हुई अपनोंकी , सपने बन गये जो वक़्त के साथ !!
अपर्णा ………
क
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