Friday, October 26, 2007

कभी सोचा ना था बचपन इतना जल्दि खो जाएगा



कभी सोचा ना था बचपन इतना जल्दि खो जाएगा। जिम्मेदारिओंके बोझ तले हर वो सपना गुम हो जाएगा।
याद आते है वो स्कूल के दोस्त,वो साईकिल की सवारी। गलेमे हाथ डालके घुमना,और वो बाते प्यारी प्यारी।
वो मिट्टि के टिले,वो बारिशका पानी। चाँकलेट पे मिले वो स्टिकर्स,जिन्हे लेके होति थी मारामारि।
वो झुठमूट का रुठना केहके”जा,तु मेरा दोस्त नहि “, पर झगडा होतेहि आके बोलना”साले,तु नहि तो में भी नहि”।
वो टिचरकि डाँटपे ,अँक्टिंग सेहम जानेकी, मन हि मन हँसके बोलना “तुझें भी तो डाँट पडी”।
त्योहारोमें घरघर घुमना,भुलके मजहब और जात, शीर कुर्मे के साथ दिवालिकें लड्डू,और बडोंका आशिर्वाद।
पिकनिक के वो धमाल गाने,नाचना बेसुरि ताल पर, चुईंगम चबाके चिपकाना ,टिचरजिके शर्ट पर।
वो आखरि दिन स्कूलका, “यार मिलते रेहना”बोले आँखोंका पानि, चुपचुपके मन भरकें देखना वो क्लास की “अपनीवालि”।
जिंदगिके ईस मुकाम पर, कभी पिछे मुडकेभि देखो यारो, स्कूलके वो दिन, कभि बैठके याद करो यारो।
तब पता चलेगा, क्या खोया क्या पाया। तब समझोगे, अरे,सारा जीवन तो युहि गवाया।
वो बचपन वापस दे दे कोई, करो रे कोई चमत्कार, दे दे वापस मेरि खिलखिलाति हुई हँसि, और मेरे कमिने दोस्तोंके बाहोंका हार।



No comments:

Post a Comment