इक दिन मिली तुम्हरी नजर से मेरी नज़र
हाथो मे थी किताब तुम्हरा था पास घर
चेहरे पे था नेकब मगर थी कुले नज़र
जो मैकसी मे ना था उसमे मे था वो असर
जब से दिखा है मुझको उसकी नसी नज़र
रहने लगा हु मे कहा मुझको ही ना खबर
आखे तरस रही है दिदार उनका बस
उनके बिगैर पूछता हु मौत तू किधर
पल पल मर रहा हु मै तो उनकी ही यादो मे
उनकी बिगैर होता नही है मुझे शबर
कैसे न तड़फे उनकी यादो मे ‘आफताब’
मसलूब हो गये है वो आइना दिखा कर
No comments:
Post a Comment