Sunday, March 8, 2015

मुझे रेगिस्तान मैं एक पानी का चश्मा मिल गया



मुझे रेगिस्तान मैं एक पानी का चश्मा मिल गया
मुझसे ना उम्मीद होने वालो देखो समुन्द्र मिल गया


उड़ ही गया वो परिंदा जिसके पर तुमको ना दिखे
देखो तंज़ देने वालो मुझे एक खजिना मिल गया


बदला वक़्त ऐसा मेरा मुझे हेरात मैं कर दिया
अभी तो रात थी ये ना जाने किसने उजाला कर दिया


अब तो फ़िक्र और बड़ गई ये जाने किसने किया कर दिया
पैदल ही अच्छा था ये दौड़ने वालो मैं क्यों शुमार कर दिया



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