Wednesday, March 31, 2010

मौसम की तरह से जो तुम ख़ुद को बदलोगे



मौसम की तरह से जो तुम ख़ुद को बदलोगे
हम कैसे तुम्हारे होंगे तुम कैसे हमारे होगे


तुम ऋतू हो बसन्त कि कोई, हम तो हैं पतझड़ से
अम्बर को छूते हो तुम, हम जिए हैं धरती पे
किस चीज़ में बेहतर हो, हर पल जो सोचोगे
हम कैसे तुम्हारे होंगे तुम कैसे हमारे होगे


कल हीर सा थे तुम कोई, और था मैं तुम्हारा राँझा
आज हीर ने वादा तोड़ा, कल आया नहीं राँझा
किस्से जो सुनाते थे, गर क़िस्सा वो ख़ुद होगे
हम कैसे तुम्हारे होंगे तुम कैसे हमारे होगे


आकाश पे भी हम जाकर, तारों सा कहीं जो बैठें
तुम चाँदनी रात कोई हो, हम कैसे भला चमकें
हर बार निगाहों की, जो फ़र्क से देखोगे
हम कैसे तुम्हारे होंगे तुम कैसे हमारे होगे


मौसम की तरह से जो तुम ख़ुद को बदलोगे
हम कैसे तुम्हारे होंगे तुम कैसे हमारे होगे



No comments:

Post a Comment