वो नूर नहीं मिलता
चाँद सितारों में
जो नूर चमकता है
मदीने की मीनारों में
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और अजमेर के दरबार से
आती है ये आवाज़
मरते हैं जो मौला पे
वो जिंदा हैं मजारों में
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मोहम्मद मुस्तफा सा
कोई दाता हो नहीं सकता
वहां से कोई ख़ाली आये
ऐसा हो नहीं सकता
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रसूल-ए-पाक को हमने
खुदा का नूर माना है
हमारी कब्र में हरगिज़ अँधेरा
हो नहीं सकता
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जमाल-ओ-हुस्न वाले तो
बहुत आयें हैं दुनिया में
मगर कोई मेरे सरकार जैसा
हो नहीं सकता
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ज़मीन-ए-हिन्द पर अब भी
मेरे ख्वाजा का कब्ज़ा है
यहाँ इनके अलावा कोई
राजा हो नहीं सकता
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करे गुस्ताखियाँ जो शख्स
शान-ए रिसालत में
कसम अल्लाह की वो
मुसलमाँ हो नहीं सकता
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